‘हमें भावांतर नहीं, भाव चाहिए’ के नारे के साथ जीतू पटवारी ने घेरा केंद्रीय कृषि मंत्री का आवास
भोपाल: मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्री जीतू पटवारी ने बुधवार को किसानों की समस्याओं को लेकर केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के भोपाल स्थित निवास पर अचानक प्रदर्शन किया। “हमें भावांतर नहीं, भाव चाहिए” के नारे के साथ हुए इस प्रदर्शन से सियासी पारा चढ़ गया।
मुख्य घटनाक्रम:
* प्रदर्शन का आधार: किसानों को सोयाबीन, धान और प्याज जैसी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिलने, तथा किसानों की आत्महत्याओं के बढ़ते मामलों को लेकर कांग्रेस ने यह प्रदर्शन किया। किसानों का कहना है कि सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है।
* “भाव चाहिए, भावांतर नहीं“: पटवारी ने भावांतर भुगतान योजना की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया। उन्होंने आरोप लगाया कि 2017 में लागू हुई भावांतर योजना का पैसा भी कई किसानों को आज तक नहीं मिला है, इसलिए किसानों को मुआवजे या अंतर की राशि (भावांतर) नहीं, बल्कि सीधे उनकी फसल का उचित ‘भाव’ मिलना चाहिए।
* हंगामा और झड़प: पटवारी किसानों के साथ कंधे पर अनाज (गेहूं/सोयाबीन) की बोरी लेकर शिवराज सिंह चौहान के बंगले तक पहुंचे। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश की, जिससे हल्की झड़प हुई और सड़क पर अनाज बिखर गया।
* शिवराज चौहान की पहल: स्थिति को बिगड़ते देख केंद्रीय कृषि मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं अपने आवास से बाहर आए और कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल को चर्चा के लिए अंदर बुलाया। दोनों नेताओं के बीच किसानों के मुद्दों पर करीब 15 मिनट तक बातचीत हुई।
* पटवारी की मांगें: पटवारी ने मांग की कि सरकार किसानों को सीधे ₹20,000 प्रति बीघा की सहायता राशि दे। इसके अलावा उन्होंने प्याज का समर्थन मूल्य ₹14-15 प्रति किलो तय करने और फसल बीमा योजना को प्रभावी बनाने की मांग भी की।
* भाजपा की प्रतिक्रिया: भाजपा ने इस प्रदर्शन को ‘कैमरा पॉलिटिक्स’ और ‘राजनीतिक स्टंट’ करार दिया। हालांकि, मुलाकात के बाद श्री पटवारी ने बाहर आकर पुलिसकर्मियों से किसी भी गलती के लिए माफी भी मांगी और कहा कि उनका उद्देश्य केवल किसानों की आवाज उठाना था।
परिणाम: चर्चा के बाद कांग्रेस का दल शांतिपूर्वक वापस लौट गया, लेकिन किसान हित का यह मुद्दा एक बार फिर प्रदेश की राजनीति में गर्मा गया है। अब सभी की निगाहें केंद्रीय कृषि मंत्री के अगले कदम पर टिकी हैं कि वह किसानों की मांगों पर क्या ठोस आश्वासन देते हैं।